रियल व्यू न्यूज , नई दिल्ली । जानें मानें पत्रकार रवीश कुमार नें एनडी टी वी से इस्तीफा दे दिया है ।किंतु इस्तीफा किन परिस्थितियों में दिया गया इस बात को सभी समझ रहे हैं । फिर भी इस बात को समझाने के लिए रवीश कुमार सोशल मीडिया पर आये जहां उनका दर्द छलक पड़ा। उन्होंने यहां भी वही कहा जो वो NDtv के प्राईम टाईम में कहते थे ।
उनका मानना है मीडिया पर सरकार का ग्रहण लगा हुआ है । अब वह स्वतंत्र और निष्पक्ष न होकर गोदी मीडिया हो गयी है । जहां अभिव्यक्ति की आजादी घुटन की त्रासदी बन गयी है । अब ऐसे एक भी मीडिया संस्थान देश में नही रहे जो जनता की आवाज बन सके । बकौल रवीश कुमार यह भी मानते हैं कि जनता के दुःख दर्द की आवाज उठाने , सच दिखाने पर मीडिया संस्थानों के जगतसेठ कुपित हो जाते हैं ।
सवाल यह है कि क्या सचमुच पत्रकारिता पर ग्रहण लग गया है ?
क्या पत्र और पत्रकार सरकार का भोंपू बन गए हैं ?
क्या वास्तव में राष्ट्र का चौथा स्तंभ कहा जानें वाला मीडिया जगत में विकृति के साथ बढ़ रही है पीत पत्रकारिता ?
क्या आने वाले दिनों में लाखों रुपए खर्च कर पत्रकार बनने वाली नई पीढ़ी को पत्रकारिता के नाम पर सरकार व मीडिया संस्थानों कि दलाली करनी पड़ेगी ?
मीडिया संस्थानों और स्वतंत्र पत्रकारों के लिए यह यक्ष प्रश्न है ।
हमारा मानना है कि आम जनता की उम्मीदों का दिया है पत्र और पत्रकार । मीडिया उन सभी जनसाधरण लोगों को हिम्मत देता है कि उनके साथ होंने वाले एक एक जुल्मों शीतम की परत दर परत उकेर देगी मीडिया । लाचार बेबस मजलूम की आस है मीडिया । इस भरोसे को कायम रखना होगा । जिसकी जिम्मेदारी सरकार और पत्रकार दोनों की है । सिक्कों के आगे गुलामी या सरकार की गुलामी , दोनों स्थितियों की जकड़न से मीडिया को आजाद रहना होगा । यद्यपि यह कटु सत्य है , संपूर्ण मीडिया संस्थान पूंजीपतियों की सल्तनत है । जहां उनकी मर्जी के विरुद्ध जाकर कुछ भी लिखना या दिखाना असंभव है । यह कलमकारों के लिए त्रासदी से कम नही होता । आज भी संवादसूत्र के रूप में छोटे छोटे कस्बों से न्यूज कवर करने वाले पत्रकारों को मनरेगा मजदूर से भी कम मानदेय दिया जाता है । यह विडंबना है की अधिकारियों से बाईट व वर्जन लेने वाला ख़बर नवीस उनके संतरी के बराबर भी पारिश्रमिक नही पाता । ऐसी विपरीत स्थितियों में भी एकनिष्ठ पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर समाचार संस्थानों को पहुंचाता है । किंतु उच्च पदों पर बैठे मालिकान जब जनता की आवाज को रद्दी में फेंक कर सत्ता और रसूखदारों की गुलामी करने लगते हैं तो सच्चे अर्थ में पत्रकारिता की हत्या हो जाती है । शायद यह भी एक कारण है की पत्रकार अपनी गरिमा खोकर बीमारु पत्रकारिता शुरू कर देता है । और जनता की भीड़ उसका नाम रख देती है …गोदी मीडिया …
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