सुजानगंज (जौनपुर) । भारतीय संस्कृति दुनिया की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है। भारतीय संस्कृति की रक्षा संस्कृत से ही की जा सकती है। संस्कृत के अभाव में संस्कृति की रक्षा संभव नहीं है। उक्त बातें गौरी शंकर संस्कृत महाविद्यालय सुजानगंज में मंगलवार को आयोजित सारस्वत सम्मान समारोह में मंगलवार की देरशाम को पद्म विभूषित जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कही।
स्वामीजी ने कहा कि इसी विद्यालय में मेरी प्रारंभिक शिक्षा हुई है इसलिए यह भूमि मेरे लिए पूजनीय है। आज मुझे अपने विद्या, विद्यालय और गुरु पर स्वाभिमान है। इस विद्यालय की ही देन है कि आज मैं यहां तक पहुंच सका हूं। इसलिए आज मैं न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया में जहां जाता हूं इस विद्यालय का गुणगान करता हूं। इस विद्यालय का मैं सदैव ऋणी रहूंगा। उन्होंने कहा कि अपनी सोच में हमेशा नवीनता लानी चाहिए। भगवान का आदर और प्रेम जहां दोनों रहते हैं उसी को भारत कहा जाता है। हम सबको सदैव प्रभु की सेवा में लीन रहना चाहिए। स्वामीजी ने कहा कि आज मैं अपनी 217 वीं पुस्तक लिख रहा हूं और मैंने संस्कृत में तीन महाकाव्य, जबकि हिदी में दो महाकाव्य लिखा है। कहा कि देश, परिवेश और उद्देश्य पर जिसे गर्व न हो उसका जीवन व्यर्थ है। कर्म रूपी पुष्प से ही भगवान प्रसन्न होते हैं। इसलिए हम सबको पूरी ईमानदारी के साथ अपने कर्म को करते रहना चाहिए। उपस्थित जनसमुदाय को सीख देते हुए उन्होंने कहा भगवान गुरु और विद्या पर स्वाभिमान होना चाहिए। आप लोगों ने जो मेरा सम्मान किया है उसके लिए मेरा रोम-रोम आप सबका ऋणी हूं। कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना से किया गया। तत्पश्चात क्षेत्र के वरिष्ठ 108 लोगों ने माल्यार्पण कर पूज्य गुरुदेव का स्वागत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिव्यांग विश्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति प्रोफेसर योगेश चंद्र दुबे तथा संचालन प्रोफेसर रामसेवक दुबे ने किया। इस मौके पर डाक्टर जयप्रकाश त्रिपाठी, डाक्टर विनय त्रिपाठी, इंदु प्रकाश त्रिपाठी, लाल बिहारी, ज्ञानचंद्र दुबे, आचार्य माधव प्रसाद द्विवेदी, राम मनोहर तिवारी, डाक्टर मिथिलेश त्रिपाठी, अवधेश सिंह, शीतला प्रसाद सिंह सहित क्षेत्र के तमाम वरिष्ठ लोग उपस्थित थे।
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