ब्रह्म पुराण के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को अर्धरात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सद्गृहस्थों के घर में जहाँ-तहाँ विचरण करती है। इसलिए अपने घर को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली तथा दीपमालिका मनाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है तथा वहाँ स्थायी रूप से निवास करती हैं।
इस दिन प्रात: उठकर दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो पितृगण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिए। सम्भव हो तो दूध, दही और घृत से पितरों का पार्वण-श्राद्ध करना चाहिए। यदि सम्भव हो तो दिन भर उपवास कर गोधूलि वेला में अथवा स्थिर लग्न में लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। व्यापार करने वाले बही,कलम, बही व तुला का पूजन करें।
दीपावली वास्तव में पाँच पर्वों का महोत्सव माना जाता है। यह धनतेरस से लेकर भाईदूज तक रहता है। दीपावली के पर्व पर धन की प्रभूत प्राप्ति के लिए धन की अधिष्ठात्री धनदा भगवती लक्ष्मी का समारोह पूर्वक आवाहन, पूजन की जाती है।