वाराणसी [कुमार अजय]। गर्मियों की उमस भरी शाम केवड़ा जल मिश्रित पानी के छिड़काव से महमह सहन में उजली झक चांदनी व गाव तकियों पर जमीं साहित्य गोष्ठी आज की चर्चा प्रसाद जी की ताजातरीन रचना लहर पर आलोचना समालोचना का क्रम अचानक ही भंग हो जाता है। बूटवल घी के कंधे पर सवार कमलगट्टे के हलवे की लपटों से बतकही में विषयांतर आ जाता है। तभी प्रकट होते हैं मिलन गोष्ठी के आयोजक बाबू जयशंकर प्रसाद। खुद अपने हाथों में हलवे की तश्तरियों से सजा थाल लेकर। और गंभीर साहित्य चर्चा का दौर ट्रैक बदलकर कमलगट्टे की खासियत-खुसूसियत की चर्चा के ईर्द-गिर्द ही सिमट जाता है। प्रसाद जयंती की पूर्व संध्या पर अपने बड़े-बुजुर्गों से सुने गए संस्मरणों को याद करके प्रसाद जी के पौत्र बाबू किरण शंकर प्रसाद भावुक हो उठते हैं। बताते हैं यह दृश्यावली जाड़ा, गर्मी, बरसात यानि हर मौसम में तब आम हुआ करती थी। दोस्तबाज जयशंकर बाबू ऐसी ही मिलन गोष्ठियां अक्सर जमाया करते थे। अपने कलम की हनक से इतर अपने कलछुल की खनक से मित्रमंडली को प्राय: चौंकाया करते थे।
बस एक ही सवाल अगली गोष्ठी कब यार : बताते हैं किरण बाबू, बनारसी व्यंजनों के स्वाद का जादू जगाने में दादा जी का कोई जोड़ न था। देसी घी और मेवे में तर चूड़ा-मटर, चूरमा, पायस और तरह-तरह की मिठाइयों से लगायत दाल बाटी तक उनकी कलछुल के इशारे पर हर रोज स्वाद का नया-नया जादू जगाते थे। खाने वाले हर गस्से पर बस अश-अश करके रह जाते थे। अगली गोष्ठी कब होगी ओलंपिक खेलों की तयशुदा तिथि की तरह उसी दिन तय करके जाते थे।
दुकान पर नहीं लगता था मन :बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रसाद जी का नारियल बाजार वाली अपनी सुगंधियों के दुकान पर बहुत मन नहीं लगता था। बावजूद इसके कारखाने में उनके बिना काम नहीं चलता था। किस आइटम में गुलाब जल, केवड़ा, खस, गुलहिना, जाफरान व शमामा किस अनुपात में पड़ेगा यह बूझने में उनका कोई सानी न था।
इस भ्रम का निवारण होना चाहिए :प्रसाद जी के पौत्र किरण शंकर प्रसाद कहते हैं कि यह भी विडंबना ही है कि दादा जी की जन्मतिथि को लेकर अब भी भ्रम की स्थिति है। बहुत से लोग 30 जनवरी को उनकी जयंती मनाते हैं। मगर घरेलू अभिलेखों के अनुसार प्रसाद जी का जन्म 1890 में 31 जनवरी की सुबह चार बजे हुआ था। अत: उनकी जयंती 31 जनवरी को मनाई जानी चाहिए। यह भी एक इक्तेफाक ही है कि उनका निर्वाण भी 15 नवंबर 1937 को भोर में चार बजे ही हुआ था।